Friday, June 13, 2008

मीडिया उद्योग बनाम मीडियाकर्मी

एक आन्दोलन कही जाने वाली पत्रकारिता एक विशुद्ध व्यवसाय का रूप ले चुकी है। अब यह छेत्र मीडिया के नाम से जाना जाता है,प्रिंट मीडिया,इलेक्ट्रोनिक मीडिया। इस व्यवसाय मे सलग्न घराने अब बड़े औद्योगिक घरानों कि तरह अपने साम्राज्य को हर सेक्टर में बढ़ाने का प्रयास करते देखे जा सकते हैं। अखबार छापने वाला एक घराना आज पब्लिकस्कूल ,management स्कूल ,शुगर फैक्ट्री,जैसे उद्योगों के साथ ही बदलती राजनीति का खिलाड़ी भी हो गया है। बुरा भी क्या है? प्रगति और समृधि पर सबका अधिकार जो है।

लकिन समृधि पर सबका अधिकार वाली बात मीडिया से जुड़े निचले तबके पर फिट नहीं बैठती .अखबार का एक संवाददाता ,मेज पर कलम घिसने वाले सम्पादक,सह सम्पादक,इलेक्ट्रोनिक मीडिया में इसी वर्ग के कर्मचारी अच्छी जीवन शैली जीवन जीने योग्य धन भी नही पाते। कई तो सुंदर भविष्य के स्वप्न में खोये मुफ्त ही खून सुखाते नजर आते हैं। शायद कभी तो दिन बहुरेंगे । १८ वर्षों से एक अखबार में कलम घिसने वाले वरिष्ठ पत्रकार से जब मैंने उसके वेतन के बारे में पूछा ,तो मैं भी अवाक रह गया । उसे आज भी लगभग १८ हज़ार का वेतन मिल रहा है। क्या आज कि परिस्तिथियों में यह नाकाफी नही है। दुनिया में होने वाले अन्यायों के ख़िलाफ़ आवाज बुलंद करने वाली पत्रकार बिरादरी भी न जाने क्यों आवाज उठाने में अपने को बेबस पाती है? सम्भव है उनकी कुछ मजबूरियां हों ।

में पिछले ३५ वर्षों से पत्रकारों के सम्पर्क में रहा हूँ। में स्वयं भी एक पत्रिका का सम्पादक रहा हूँ। कलम घिसने वाले इस श्रमजीवी -पत्रकार वर्ग के दर्द को मैंने बहुत करीब से महसूस किया है। लेकिन शायद मैं भी मजबूर ही रहा हूँ,कर कुछ नही सका.एक दर्द को अपनी कलम से रेखांकित करने का मेरा यह एक प्रयास है। पत्रकारों को अपने अधिकारों के लिए मुखर देखने कि इच्छा का अंग है यह ब्लॉग .शायद कुछ परिवर्तन हो सके। नही तो मैं बस यही कहूँगा सब भाग्य का खेल है। में ज्योतिषी हूँ, तो मेरे लिए यह स्वीकार करना सबसे सुगम ,सुरक्षित मार्ग है। लकिन एक जागृत समाज दर्द कि सच्चाई से मुह नही मोड़ सकता।

3 comments:

समयचक्र said...

Apke alekh se sahamat hun . achcha likha hai apne.

Mitali Ratnapriya said...

bahut hi sahi likha hai aapne...patrakarita ke badlte roop ke baare main.
mitali

Unknown said...

Real and Best article