Monday, March 30, 2009

चाहिए अपराधी -मुक्त संसद

कारों के काफिले, उनकी खिड़कियों से झाकती बंदूकें,कारों मैं बैठे तथाकथित नेता और उनके गुर्गे,क्या यही है देश के जनप्रतिनिधियों की पहचान?


सभी राजनीतिक दलों ने मंझे हुए गुंडों और माफिया को इस संसदीय चुनाओ मैं भी मैदान मैं उतरा है। शायद अब इनके बिना संसद अधूरी ही लगती है। शायद अब नेता का पर्याय गुंडा,माफिया,आतंकी,सेंधमार, लफंगा हो गया है। शरीफ आदमी को अब कोई जिताऊ उम्मीदवार मानने को राजी ही नही होता। धनबली और बाहुबली ही neta माने जाने लगे हैं। आख़िर क्यूँ?


तो फिर, क्या मान लिया जाए कुछ दिनों बाद भारत की संसद शतप्रतिशत अपराधियों से भरपूर संसद होगी? क्या हम इसके लिए तैयार हैं? हम अपने और अपने आने वाली पीढियों को इन अपराधियों के हाथों बंधक हो जाने देंगे? इन सब बातों पर गंभीर चिंतन जरूरी है।


आपके हाथों मैं पहली शक्ति है 'वोट' की और दूसरी 'चोट' की। आइये हम सर्वप्रथम अपनी वोट शक्ति का प्रयोग करके अपराधी मुक्त संसद निर्माण का प्रयास करते हैं। यदि यह न हो सका तो हम सबको संगठित 'चोट' करने के लिए भी तैयार रहना ही होगा।