Thursday, July 17, 2008

शत्रुघ्न लाल शुक्ल

साठ के दशक में unesko से समानित लेखक,उपन्यासकार शत्रुघ्न लाल शुक्ल की यादें आज मुझे कुछ विचलित कर देती हैं। सुनने की शक्ति से पूरी तरह शून्य शत्रुघ्न लाल शुक्ल ने अपने जीवन काल में लगभग १२६ पुस्तकें लिखीं। जो vibhinn प्रकाशकों से प्रकाशित हैं। राजनीतिक जोड़तोड़ से दूरियां और तिकरम तंत्र का ज्ञान न होने के कारण मीडिया ने भी उन्हें कोई महत्व नही दिया। धन और यश ने भी उनसे दूरियां बनाए रखीं। हाँ लोगों ने उनका जम कर दोहन और शोषण किया। कानपूर के एक तथाकथित ज्योतिष महापुरुष का सारा साहित्य तो उन्ही की लेखनी का प्रसाद है। इस समस्त लेखन के लिए उन्हें विशेस प्रलोभन दिए गए। अर्थहीनता सबसे बड़ा abhishhap है ही। दिए गए प्रलोभन से मुकर गया और एक बार फिर सरस्वती पुत्र के साथ वही हुआ जो शायद उसकी नियति थी । मुझसे उन्होंने बड़े दुःख से सारी कथा sunaayi और जीवन पर पछताते रहे। बाद में उन्होंने खीज में आकर स्वयं भी ज्योतिष और तंत्र- मंत्र साहित्य की रचना की जो उनके नाम से प्रकाशित भी हुआ शत्रुघ्न लाल शुक्ला जैसे कलम के जादूगर ने 'आज' और जागरण प्रकाशन में प्रूफ्रेअदर के रूप मैं सेवा करते हुए एक लंबा समय कानपुर में बिताया । मेरे कार्यालय में उनका आना और चाय की चुस्कियों के साथ तथाकथित महामनाओं को कोडवर्ड में गालियाँ देना आज भी याद है। नियति का खेल भी विचित्र है। शत्रुघ्न लाल शुक्ल की मौत भी सामान्य ढंग से नहीं हुयी । उन्नो स्टेशन पार कर रेल लाइन के किनारे-किनारे जाते हुए रेल दुर्घटना मैं २२ अगस्त १९८८ को उनका शरीरांत हो गया। एक सरस्वती पुत्र को जीते जी हमने क्या दिया,यह चिंतन का विषय हैं । अब ख़बर यह भी है,की शत्रुघ्न लाल शुक्ल के साहित्य पर शोध कर किसी ने पी अच् दी भी ले ली है। यही है दुनिया !

जीते जी हम जिन्हें पानी नही देते, मरने के बाद बुतों पर दिए jalaate हैं।