Thursday, January 17, 2008

एक याद ! गुलजारीलाल नंदा..

पुरानी फाईलें पलटते हुए एक पत्र मेरे सामने है. यह पत्र है,भारत रत्न स्व० गुलजारी लाल नंदा का.पत्र देखते ही पुरानी यादें मेरे सामने तैर गयीं हैं.पत्र में लिखी एक पंक्ति भी मुझे बार-बार कुछ सोचने को मजबूर करती है.यह पंक्ति है…दिल्ली में अभी मेरा कोई निश्चित स्थान नहीं बन पाय है.यह पत्र २२ मार्च १९७८ को लिखा गया है.मैं बार-बार यही सोच रहा हूँ,कई बार भारत सरकार के गृहमंत्री और कार्यवाहक प्रधानमंत्री पद पर आसीन रहने वाला व्यक्ति कितना नासमझ रहा होगा,कि दिल्ली में एक अदद बड़ा बंगला भी कब्जियाये न रह सका.छोटी-मोटी अचल सम्पत्ति भी न बना सका.क्या यह सच-मुच अचंभित नहीं करता?हमारे मोहल्ले का अदना सा पार्षद भी साल-दो साल में कई जमीनों पर कब्जा कर लेता है,और साईकिल से उतर कर स्कॉर्पियो पर चलने लगता है.साथ होते हैं दो चार बंदूकधारी.
गुलजारीलाल नंदा से मैं २४ फरवरी १९७८ को कानपूर में ही अपने एक मित्र के यहाँ मिला था. मुझे ज्योतिषी बने दो-चार साल ही हुए थे.लोगों से मिलना और उनके बारे में जानना मेरा शगल था.देश के सर्वोच्च पदों पर आसीन रहने वाले व्यक्ति के साथ मैंने तब,न कमांडो देखे न कोई ताम-झाम. उनमें मैंने कोई भय भी नहीं देखा .हाँ उनकी काली शेरवानी में मैंने चार-छह छेद जरूर देखे जो उनकी सचाई का बयान कर रहे थे. शायद उन्हें लाल,मायावती,अटल बिहारी बाजपेयी ,सोनिया गाँधी,अमर सिंह आदि जैसे अनेक नेताओं कि तरह डिजाइनर वैभव का न तो ज्ञान था और न चमता . अपनी भोजन व्यवस्था के लिए दलिया साथ लेकर चलने वाले गुलजारी लाल नंदा को ऐसे नेता क्या कहेंगे,जो ८०-८५ साल कि उम्र में भी स्वाद लोलुप रहते हैं.आज मैं यही सोचता हूँ,आज के नेताओं और गुलजारी लाल जैसे नेता में क्या अंतर है? शायद,आज माफिया गुंडा और नेता एक दुसरे के पर्याय बन चुके हैं. मेरे जैसा ज्योतिषी यह भी कह सकता है कि ‘ग्रहों का फेर है भाई’. ३ जुलाई १८९८ को जन्म लेने वाले गुलजारी लाल नंदा के ग्रह ही शायद ऐसे थे,कि वो ऐसे थे,जैसा मैंने उन्हें देखा ,जाना और समझा और बयान किया.

Saturday, January 12, 2008

क्यों चाहिये आरक्षण ???

हिन्दू धर्म में हो रहे जातीय उत्पीड़न से परेशान दलितों ने धर्म परिवर्तन किया.कुछ मुसलमान बन गये तो कुछ ईसाई.धर्म परिवर्तन करते ही उनका उत्पीड़न समाप्त हो गया और दलित होने का ठप्पा भी.अब तो सब सुख ही सुख होना ही चाहिये. ‘दुःख भरे दिन बीते रे भैया अब सुख आयो रे’ गाना गाते हुए उन्हें नित्य आनंद मग्न होना चाहिये.
लेकिन यह क्या हो रहा है?दलित ईसाई,दलित मुसलामानों को आरक्षण का शोर मचने लगा है.आखिर क्यों?धर्म परिवर्तन के बाद जब उनके सारे दुःख-दर्द दूर होने का दावा हो रहा था,फिर आरक्षण की क्या जरूरत?मतलब ,क्या उनके दुःख-दर्द दूर नहीं हुए.मुसलमान,ईसाईयों में भी जातिवाद हावी है?क्या अंतर पड़ा धर्म परिवर्तन का?ऐसे,कई प्रश्न क्या हमें आपको विचलित करने के लिए काफी नहीं हैं…

धर्म परिवर्तन के बाद आरक्षण माँगना बेहयायी और आरक्षण देना हिन्दू समाज के दलितों के साथ अन्याय ही होगा.देश के दलितों को अधिकार है,कि वह अपने साथ हुए अन्याय का मुआवजा समाज से मांगें और लें.लकिन जो दलित मुखोटा उतार कर मुसलमान या इसाई बन चुके हैं,उन्हें समाज से मुआवजा पाने का कोई अधिकार नहीं,क्यों कि वह भेदभाव रहित धर्मों की शरण में जा चुके हैं.आप भी शायद मेरे विचारों से सहमत होंगे! मैं गलत तो नहीं कह रहा हूं?

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आपके लिए.

Wednesday, January 9, 2008

तीन एहसास

हवाएं कुछ सर्द होती जा रही हैं.
फिजायें बेदर्द होती जा रही हैं.
आओ करें माहौल थोडा सा गरम-
जेहनी सर्दियां,दर्द होती जा रही हैं.

भरम उतना ही भला,मन बहल जाये.
दर्द कुछ पिघले,घाव कुछ सहल जाये.
पर हदबंदी भी जरूरी है-
दर्द इतना न सहो, कि दम निकल जाये.

अंधेरों में हांथ क्या चलाते हो.
अंधेरा दूंदते हो,उजाला बताते हो.
उजाले चाहिए,आग तो जलाओ-
शोला बनो,क्यों टिमटिमाते हो.

Friday, January 4, 2008

एक और नया साल

आज एक साल जा रहा है,तो दूसरा आ रहा है.दुनिया भर मैं हंगामा मचा है.विशेष आयोजन हो रहे हैं.शराब पानी की तरह बहेगी! नर्तकियाँ एक-एक कर अपना शरीर उघाड़ रही होंगी.लोग मदहोश हो रहे होंगे.नेतिकता की दुहाई देने वाला समाज अपने आप को नंगा होता हुआ देखेगा.वाह क्या कहने…यही है-नए साल का जश्न,यही है नए साल की मस्ती और यही है हमारा ख़ुशी दिखाने का जूनून.
मुझे तो नए और पुराने साल में कुछ भी फर्क नहीं दिखता.मुझे सड़क पर कूड़ा बीनते bache गए साल में भी दिखे और नए साल में भी दिखे.गुंडे नेता बनते, गए साल में भी दिखे और नए साल में भी.
ईमानदारी गए साल में पिटी,नए साल में भी पिटेगी.एक किरण बेदी गए साल में अन्याय का शिकार हुई ,नए साल में भी कोई जरूर होगी.और भी न जाने क्या-क्या होगा जो गए साल में हुआ नए साल में भी होगा.अरे हाँ,लाल किले पर झंडा गए साल में फहराया गया,नए साल में भी फहराया जाएगा.
प्रधानमंत्री लिखा लिखाया मनमोहक भाषण देश की जनता के सामने धकेलेंगे.
और जनता ‘जए हिंद’ का नारा लगाते हुए पेट को मलेगी.पूंजीपति,नेता,गुंडे,नौकरसाह और विदेशी राजनयिक ताली बजायेंगे.और फिर भीड़ जरा भी भड़की तो गोलियां चलाने को तैयार पुलिस भी तो है.कहीं भी नंदीग्राम बनने में देर नहीं लगेगी. बस ऐसे ही पुराने साल जायेंगे,नए साल आएंगे.कोई शराब से नहायेगा तो कोई पानी को भी तरसेगा.कोई मदहोश करने को कपड़े उतारेगा,तो कोई मजबूरी में नंगा रहेगा. क्या ये सब ऐसे ही चलेगा?नए साल ऐसे ही,आएंगे,जायेंगे?
ढंग कुछ तो बदलना चाहिऐ ,बेवजह हँसना भी बेहयाई है!