Wednesday, November 21, 2007

सिर झुकता है आज भी....

एक वक़्त था

नेता शब्द सोचते ही
गाँधी,सुभाष,नेहरू,कलाम
याद आते थे.
सिर झुक जाता था ,श्रद्धा से।

आज वक़्त है,

नेता शब्द सोचते ही
मुख्तार,लालू,अमरमणि,शाहबुद्दीन
याद आते हैं.
सिर झुकता है,आज भी
पर,शर्म से.

सच,वक़्त बदल गया है,
बदल गया है,नेता का अर्थ भी
नेता का नाम,सम्मान से नही
अब ,गाली देकर लेने का
मन करता है,
मन करता है बुलाऊ गाँधी को
एक बार फिर धरती पर,
देखें अपनी आँखों से
क्या यही है,
उनके सपनों का भारत ?

Saturday, November 3, 2007

मैं और मेरा सफर


मैं आज़ाद भारत मॆं janma– १९ अगस्त १९५०. जन्म से राजकुमार.फिर, बना वियोगी और कविता से लेकर व्यंग लेखों तक,कागज काले किये. अखबारी और साहित्यक राजनीति को करीब से देखा.कुछ सुखद पल भी आये,वेदविद डाक्टर मुंशीराम शर्मा ‘सोम’और unesco पुरूस्कार प्राप्त लेखक शत्रुघ्न लाल शुक्ल का सानिध्य और स्नेह भी मिला.और फिर खुद कि भाग्य रेखाएँ तलाशते,दूसरों कि भाग्य रेखाएँ पढने लगा, और बन गया-राजकुमार रत्न्प्रिय.एक साहित्यकार से ज्योतिषी बनने का सफ़र मुझे तो कुछ अजीब ही लगता है.लकिन लोग कहते हैं-साहित्यकार भी तो हमेशा भविष्य मॆं झाकता ही रहता है,मेरा सफ़र आख़िर ‘सफ़र’ ही है,जो मैं कर रहा हूँ.अब मैं आपको भी अपने साथ सफ़र का हमसफ़र बना रहा हूँ.

रंग-बदरंग

रंग मुझे आकर्षित करते हैं.सूर्योदय और सूर्यास्त के आकाशीय रंग,खिलते फूलों के रंग,उड़ती तितलियों के रंग और ऐश्वर्य से भरेपूरे रत्नों के रंग किसकी आंखों को नहीं भाते,मुझे भी बहुत भाते हैं.
रंगों का संसार जीवन में रंग भर देता है.ज्योतिष में रंगों के विशेष प्रभावों का वर्णन भी है.प्रत्येक व्यक्ति के लिए विशेष रंग शुभ या अशुभ होता है.कुल मिला कर रंग हमारे जीवन का अंग हैं.
अब बात रंग बदलने कि,रंग बदलना लोग अच्छा नही मानते.रंग लोग बदलते हैं और कहेंगे-गिरगिट कि तरह रंग बदल रहा है.बेचारा गिरगिट अपनी जान बचाने को रंग बदलता है,लोग रंग बदलते हैं अपने स्वार्थ साधने के लिए.दोनो में बड़ा अंतर है भाई.आख़िर नेताओं ,अभिनेताओं और dharmdhawajadhariyon से रंग बदलने वालों कि उपमा क्यों नही दी जाती? आख़िर क्यों?क्या हम रंग बदलने के मामले में बहुत आगे नही हैं?या हम बदरंग ही हैं,केवल बातें ही रंगीन करते हैं.क्या हम सुधर नही सकते?