Tuesday, October 30, 2007

लाफिंग budhha और भाग्य

आजकल वास्तुशास्त्रियों की बाढ़आई हुयी है.फेंगशुई आदि के परामर्श देने वाले बड़े-बड़े बैनर लगाए हुए हैं.अभी कुछ दिन पूर्व मुझे एक दुखी सज्जन मिले.जेब मैं फेंगशुई के कुछ साधन और जीभ पर लाफिंग budhha से बहुत सी शिकायतें .अपना मकान भी उन्होंने तोड़फोड़ डाला और वास्तु शोधन मैं अच्छा खासा खर्च भी किया.लेकिन सब व्यर्थ,भाग्य नही बदला तो नही ही बदला.यह तो एक कहानी है.ऐसी ही कई कहानियाँ और भी होंगी.मुझे इन लोगों से सहानुभूति है,साथ ही इनकी बुद्धि पर तरस भी आता है।
अपने एक लंबे प्रोफेशनल अनुभव में मैंने पाया, कि यदि जन्म पत्रिका मैं grhadosh है,तो वास्तु शोधन और अनेक चीनी-जापानी साधन व्यर्थ ही रहते हैं.जातक को चाहिये कि सर्वप्रथम वह अपने ग्रह दोषों से मुक्ति का निदान करे.बाक़ी प्रयोग बाद में ही करना उचित होगा.शुभ ग्रह स्थितियां अनेक दोषों का स्वयं ही शमन करती हैं.लाफिंग budhha को अपने भाग्य पर ठहाके लगाने का मौका न दें,बल्कि खुद मुस्कराएँ,मैं यही चाहता हूँ.

Tuesday, October 23, 2007

कैसे बात करूं

कैसे बात करूं तनमन की,
मौसम का बदल गया रंग.

लहराये परचम वादों के

गड़े गए संवाद विवादों के.
नुचवाये खुद पंख कपोतों ने,

कैसे बात करूं शबनम की,
मौसम का बदल गया रंग.

तने गा रहे,महल पथरीले.
सिसकेमेड़ों के गीत सुरीले.
बनवाये पिंजरे तोतों ने,

कैसे बात करूं सरगम की,
मौसम का बदल गया रंग.

कूक सीने मे,हाँथ खाली.
जलाए बाग़ खुद,आज माली.
चाह को सताया चहेतों ने-

कैसे बात करूं हमदम की,
मौसम का बदल गया रंग.