Wednesday, January 9, 2008

तीन एहसास

हवाएं कुछ सर्द होती जा रही हैं.
फिजायें बेदर्द होती जा रही हैं.
आओ करें माहौल थोडा सा गरम-
जेहनी सर्दियां,दर्द होती जा रही हैं.

भरम उतना ही भला,मन बहल जाये.
दर्द कुछ पिघले,घाव कुछ सहल जाये.
पर हदबंदी भी जरूरी है-
दर्द इतना न सहो, कि दम निकल जाये.

अंधेरों में हांथ क्या चलाते हो.
अंधेरा दूंदते हो,उजाला बताते हो.
उजाले चाहिए,आग तो जलाओ-
शोला बनो,क्यों टिमटिमाते हो.

No comments: