Friday, January 4, 2008

एक और नया साल

आज एक साल जा रहा है,तो दूसरा आ रहा है.दुनिया भर मैं हंगामा मचा है.विशेष आयोजन हो रहे हैं.शराब पानी की तरह बहेगी! नर्तकियाँ एक-एक कर अपना शरीर उघाड़ रही होंगी.लोग मदहोश हो रहे होंगे.नेतिकता की दुहाई देने वाला समाज अपने आप को नंगा होता हुआ देखेगा.वाह क्या कहने…यही है-नए साल का जश्न,यही है नए साल की मस्ती और यही है हमारा ख़ुशी दिखाने का जूनून.
मुझे तो नए और पुराने साल में कुछ भी फर्क नहीं दिखता.मुझे सड़क पर कूड़ा बीनते bache गए साल में भी दिखे और नए साल में भी दिखे.गुंडे नेता बनते, गए साल में भी दिखे और नए साल में भी.
ईमानदारी गए साल में पिटी,नए साल में भी पिटेगी.एक किरण बेदी गए साल में अन्याय का शिकार हुई ,नए साल में भी कोई जरूर होगी.और भी न जाने क्या-क्या होगा जो गए साल में हुआ नए साल में भी होगा.अरे हाँ,लाल किले पर झंडा गए साल में फहराया गया,नए साल में भी फहराया जाएगा.
प्रधानमंत्री लिखा लिखाया मनमोहक भाषण देश की जनता के सामने धकेलेंगे.
और जनता ‘जए हिंद’ का नारा लगाते हुए पेट को मलेगी.पूंजीपति,नेता,गुंडे,नौकरसाह और विदेशी राजनयिक ताली बजायेंगे.और फिर भीड़ जरा भी भड़की तो गोलियां चलाने को तैयार पुलिस भी तो है.कहीं भी नंदीग्राम बनने में देर नहीं लगेगी. बस ऐसे ही पुराने साल जायेंगे,नए साल आएंगे.कोई शराब से नहायेगा तो कोई पानी को भी तरसेगा.कोई मदहोश करने को कपड़े उतारेगा,तो कोई मजबूरी में नंगा रहेगा. क्या ये सब ऐसे ही चलेगा?नए साल ऐसे ही,आएंगे,जायेंगे?
ढंग कुछ तो बदलना चाहिऐ ,बेवजह हँसना भी बेहयाई है!

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