मैं आज़ाद भारत मॆं janma– १९ अगस्त १९५०. जन्म से राजकुमार.फिर, बना वियोगी और कविता से लेकर व्यंग लेखों तक,कागज काले किये. अखबारी और साहित्यक राजनीति को करीब से देखा.कुछ सुखद पल भी आये,वेदविद डाक्टर मुंशीराम शर्मा ‘सोम’और unesco पुरूस्कार प्राप्त लेखक शत्रुघ्न लाल शुक्ल का सानिध्य और स्नेह भी मिला.और फिर खुद कि भाग्य रेखाएँ तलाशते,दूसरों कि भाग्य रेखाएँ पढने लगा, और बन गया-राजकुमार रत्न्प्रिय.एक साहित्यकार से ज्योतिषी बनने का सफ़र मुझे तो कुछ अजीब ही लगता है.लकिन लोग कहते हैं-साहित्यकार भी तो हमेशा भविष्य मॆं झाकता ही रहता है,मेरा सफ़र आख़िर ‘सफ़र’ ही है,जो मैं कर रहा हूँ.अब मैं आपको भी अपने साथ सफ़र का हमसफ़र बना रहा हूँ.
Saturday, November 3, 2007
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